Wednesday 1 February 2012

"पर-पीड़ा सम नहीं अधमाई"..........!!

मानवमात्र की मुक्ति का माध्यम सहानुभूति है | समवेदना के द्वारा हम कल्याण के मार्ग को प्रशस्त कर सकेंगे | विकलांगो को सहायता करे | निराधारो को आश्रय दे|
असहाय जनों को सहारा दे | बीमार व्यक्ति को यथासंभव मदत करे | कमजोर व्यक्ति को मदत करे |
मुसीबत में काम आये | दुखी लोगो को सुख पहुचाये | न जाने ,किस वेष में नारायण मिल जाये |
तभी तो ,सेवा को महंता संत-महात्मा ने बताई है | सेवा का फल सदेव मीठा होता है |
"पर-हित सरिस धर्मं नहीं भाई |
पर-पीड़ा सम नहीं अधमाई |"
सदेव ध्यान में रखे की हम अपने व्यवहार से किसी को भी कष्ट-पीड़ा न पहुचाये | यदि किसी को हमारे द्वारा थोडा भी दर्द हुआ तो वह नीचता होगी |
हो सके तो, कल्याणकारी और सामाजिक कार्य करते रहे | ऐसे काम करे ,जिससे हित हो |
भूल कर भी अपने आचरण से कष्ट न दे |
आईये, इस भावना को अपने व्यवहार में उतरने का प्रयास करे |
इति शुभम |








संपादक
वेदप्रकाश आर्य , सहदेव
मेढ़ सोनार जगत

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