Maharaja AJMEEDH JI is the Founder of Maidh Kshatriya Swarnakar Community which is known as Varma, Soni, Sunar, Swarnakar We invite all Maidh Kshatriya Swarnkars to join our Maharaja Shree Ajmeedh Ji Blog So come Join this Blog and help our Community to know more about our Maharaja Shree Ajmeedhji History... Thanking You...........!! Jai Admeedh ji....... Regards:Nandkishor Varma, Mumbai
Wednesday, 12 October 2011
मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदिपुरुष " श्री अजमीढ़ जी महाराजा जयंती " बड़ी धूम धाम से मनाने जा रहे हैँ। इस पावन पर्व पर मै नंदकिशोर मौसूण आप सभी मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार बंधुओं और पूरे परिवार के लिए "Maharaja Shree Ajmeedh ji" Blog का विमोचन (पब्लिश) करने जा रह हूँ। और इस Blog को श्री अजमीढ़ जी महाराजा चरणों में अर्पित कर उनको सत-सत नमन।
यह एक छोटी सी सुरुवात हैं.....आगे आगे Blog मे मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज तथा श्री अजमीढ़ जी महाराजा का इतिहास और सभी जानकारी पोस्ट होती रहेगी. उसमें आप सभी लोगों का सहयोग आमत्रिंत है. महाराजा श्री अजमीढ़ जी पेज के लिए जिन स्वर्णकार बंधुओं ने मदत कि उनका तहेदिल से शुक्रिया . श्री अजमीढ़ जी Blog का उदेश्य यही है कि सभी मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार भाई बन्धु को हमारे आदिपुरुष का इतिहास पता चले.सभी स्वर्णकार भाई बन्धु माता-बहानों को श्री अजमीढ़ जी महाराजा जयंती एवं शरद पूर्णिमा (कोजागिरि) पर शुभकामनाएं तथा बधाईयाँ देता हूँ.
धन्यवाद
जय अजमीढ़जी.....!!
आपका सेवक
नंदकिशोर मोसुण
संस्थापक एवं एडमिन
मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार यूथ फोरम
महाराजा श्री अजमीढ़ जी पेज
मुम्बई
यह एक छोटी सी सुरुवात हैं.....आगे आगे Blog मे मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज तथा श्री अजमीढ़ जी महाराजा का इतिहास और सभी जानकारी पोस्ट होती रहेगी. उसमें आप सभी लोगों का सहयोग आमत्रिंत है. महाराजा श्री अजमीढ़ जी पेज के लिए जिन स्वर्णकार बंधुओं ने मदत कि उनका तहेदिल से शुक्रिया . श्री अजमीढ़ जी Blog का उदेश्य यही है कि सभी मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार भाई बन्धु को हमारे आदिपुरुष का इतिहास पता चले.सभी स्वर्णकार भाई बन्धु माता-बहानों को श्री अजमीढ़ जी महाराजा जयंती एवं शरद पूर्णिमा (कोजागिरि) पर शुभकामनाएं तथा बधाईयाँ देता हूँ.
धन्यवाद
जय अजमीढ़जी.....!!
आपका सेवक
नंदकिशोर मोसुण
संस्थापक एवं एडमिन
मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार यूथ फोरम
महाराजा श्री अजमीढ़ जी पेज
मुम्बई
अजमीढ़ की माया
पैनी नजर सुनार की, कहीं मीन ना मेख।
आभूषण निर्माण की कार्य कुशलता देख।
कार्य कुशलता देख, सभी हुए अचंभित।
नौ रत्नों को जड़कर, जेवर किए सुशोभित।
कहें तरंग कविराय, हम क्यों पिछड़ रहे|
हैं कला हमारी क्यों, गैरों को बांट रहे हैं।
सोना-चांदी पारखी, परखे हीरे लाल।
सारी धातू जानते, करते बड़ा कमाल।
करते बड़ा कमाल, कहां से विद्या पायी।
नजर बड़ी है तेज, कहां सीखी चतुरायी।
कहे तरंग कविराय, ये सब अजमीढ़ की माया।
पीढ़ी दर पीढ़ी बनी रहे इनकी क्षत्रछाया।
बोलों ......"महाराज अजमीढ़ देव जी की जय"
आभूषण निर्माण की कार्य कुशलता देख।
कार्य कुशलता देख, सभी हुए अचंभित।
नौ रत्नों को जड़कर, जेवर किए सुशोभित।
कहें तरंग कविराय, हम क्यों पिछड़ रहे|
हैं कला हमारी क्यों, गैरों को बांट रहे हैं।
सोना-चांदी पारखी, परखे हीरे लाल।
सारी धातू जानते, करते बड़ा कमाल।
करते बड़ा कमाल, कहां से विद्या पायी।
नजर बड़ी है तेज, कहां सीखी चतुरायी।
कहे तरंग कविराय, ये सब अजमीढ़ की माया।
पीढ़ी दर पीढ़ी बनी रहे इनकी क्षत्रछाया।
बोलों ......"महाराज अजमीढ़ देव जी की जय"
|| श्री अजमीढ़ जी महाराज की आरती ||
|| श्री अजमीढ़ जी महाराज की आरती ||
। आरती अजमीढ़ जी की ।
। आरती अजमीढ़ जी की ।
आरती कीजै अजमीढ़ राजा की। सेवा निरन्तर की अपने प्रजा की॥
महाराज हस्तीजी के घर जाए। हस्तीनापुर के जनक गए बनाए॥
शरद पूर्णिमा का दिन भाग्यशाली। मां सुदेशा के घर आयी खुशहाली॥
यशोधरा से जन्मे द्विमीढ़ पुरुमीढ़ भाई। मैढ़ क्षत्रिय वंश की स्वर्ण ध्वजा लहराई॥
स्वर्णकारी कला का शुरु किया काम। जिससे गौरवान्वित हुआ समाज का नाम॥
अजयमेरु में एक नगर बसाया। स्वर्ण बंधुओं के कार्य क्षेत्र को बढ़ाया॥
इस दिन को मनाएं हर समाज के भाई। करें अर्चना पूजा, बांटे फल-फूल मिठाई॥
समस्त समाज बंधुओं की विनती करें स्वीकार। अजमीढ़ देव ही करेंगे, हम सब की नैया पार॥
राजा हस्ती के येष्ठ पुत्र अजमीढ़ महान चक्रवर्ती राजा चन्द्रवंशी थे। इनके दो भाई पुरुमीढ़ व डिमीढ़ भी पराक्रमी राजा थे। महाराजा अजमीढ़ के दो रानियां सुयति व नलिनी थी। इनके गर्भ में बुध्ददिषु, ऋव, प्रियमेध व नील नामक पुत्र हुए। उनसे मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज का वंश आगे चला। अजमीढ़ ने अजमेर नगर बसाकर मेवाड़ की नींव डाली। महान क्षत्रिय राजा होने के कारण अजमीढ़ धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे। वे सोने-चांदी के आभूषण, खिलौने व बर्तनों का निर्माण कर दान व उपहार स्वरुप सुपुत्रों को भेंट किया करते थे। वे उच्च कोटि के कलाकार थे। आभूषण बनाना उनका शौक था और यही शौक उनके बाद पीढ़ियों तक व्यवसाय के रुप में चलता आ रहा है। उन्होंने सर्वप्रथम स्वर्ण समाज को अपनाया था। कालान्तर में क्षत्रिय स्वर्णकार समाज उनके वंशज हैं। समाज के सभी व्यक्ति इनको आदि पुरुष मानकर अश्विनी शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा-कोजागिरि)को जयंती मनाते हैं।
|| महाराजा अजमीढ़ जी की जय ||:~:|| महाराजा अजमीढ़ जी की जय ||
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