Monday 22 October 2012

अजमीढ़ की माया...!!

पैनी नजर सुनार की, कहीं मीन ना मेख।
आभूषण निर्माण की कार्य कुशलता देख।
कार्य कुशलता देख, सभी हुए अचंभित।

नौ रत्नों को जड़कर, जेवर किए सुशोभित।
कहें तरंग कविराय, हम क्यों पिछड़ रहे|
हैं कला हमारी क्यों, गैरों को बांट रहे हैं।
सोना-चांदी पारखी, परखे हीरे लाल।
सारी धातू जानते, करते बड़ा कमाल।
करते बड़ा कमाल, कहां से विद्या पायी।
नजर बड़ी है तेज, कहां सीखी चतुरायी।
कहे तरंग कविराय, ये सब अजमीढ़ की माया।
पीढ़ी दर पीढ़ी बनी रहे इनकी क्षत्रछाया।

बोलों ......
"महाराज अजमीढ़देवजी की जय"

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