Maharaja AJMEEDH JI is the Founder of Maidh Kshatriya Swarnakar Community which is known as Varma, Soni, Sunar, Swarnakar We invite all Maidh Kshatriya Swarnkars to join our Maharaja Shree Ajmeedh Ji Blog So come Join this Blog and help our Community to know more about our Maharaja Shree Ajmeedhji History... Thanking You...........!! Jai Admeedh ji....... Regards:Nandkishor Varma, Mumbai
Sunday, 4 November 2012
Monday, 29 October 2012
श्री अजमीढ़जी जयंती की हार्दिक शुभकामनाये....!!
आदि पुरुष श्री अजमीढ़जी जयंती की हार्दिक बधाईयाँ और शुभकामनाये...!!
मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार यूथ फोरम कि कि ओर से सभी स्वर्णकार भाई-बन्धु ओर परिवार को "श्री अजमीढ़ जी महाराजा जयंती एवं शरद पूर्णिमा (कोजागिरि)" पर हार्दिक बधाईयाँ तथा शुभकामनाएं.
आज 29अक्टूबर 2012 आश्विन सुदी पूर्णिमा शरद पूर्णिमा (कोजागिरि) को मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदिपुरुष " श्री अजमीढ़ जी महाराजा जयंती " बड़ी धूम धाम से मनाने जा रहे हैँ।
आदिपुरुष की जयंती पर श्रध्दासुमन अर्पित कर साथ-साथ मिलकर आगे बढ़ने का संकल्प करे।
जोर से बोलो....जय अजमीढ़जी
प्यार से बोलो ...जय अजमीढ़जी
सारे बोलो...जय अजमीढ़जी
जय स्वर्णकार समाज..जय अजमीढ़जी
मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार यूथ फोरम कि कि ओर से सभी स्वर्णकार भाई-बन्धु ओर परिवार को "श्री अजमीढ़ जी महाराजा जयंती एवं शरद पूर्णिमा (कोजागिरि)" पर हार्दिक बधाईयाँ तथा शुभकामनाएं.
आज 29अक्टूबर 2012 आश्विन सुदी पूर्णिमा शरद पूर्णिमा (कोजागिरि) को मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदिपुरुष " श्री अजमीढ़ जी महाराजा जयंती " बड़ी धूम धाम से मनाने जा रहे हैँ।
आदिपुरुष की जयंती पर श्रध्दासुमन अर्पित कर साथ-साथ मिलकर आगे बढ़ने का संकल्प करे।
अजमीढ़जी का मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज हमेशा ऋणी रहेगा.
जोर से बोलो....जय अजमीढ़जी
प्यार से बोलो ...जय अजमीढ़जी
सारे बोलो...जय अजमीढ़जी
जय स्वर्णकार समाज..जय अजमीढ़जी
Thursday, 25 October 2012
Monday, 22 October 2012
अजमीढ़ की माया...!!
पैनी नजर सुनार की, कहीं मीन ना मेख।
आभूषण निर्माण की कार्य कुशलता देख।
कार्य कुशलता देख, सभी हुए अचंभित।
आभूषण निर्माण की कार्य कुशलता देख।
कार्य कुशलता देख, सभी हुए अचंभित।
नौ रत्नों को जड़कर, जेवर किए सुशोभित।
कहें तरंग कविराय, हम क्यों पिछड़ रहे|
हैं कला हमारी क्यों, गैरों को बांट रहे हैं।
सोना-चांदी पारखी, परखे हीरे लाल।
सारी धातू जानते, करते बड़ा कमाल।
करते बड़ा कमाल, कहां से विद्या पायी।
नजर बड़ी है तेज, कहां सीखी चतुरायी।
कहे तरंग कविराय, ये सब अजमीढ़ की माया।
पीढ़ी दर पीढ़ी बनी रहे इनकी क्षत्रछाया।
कहें तरंग कविराय, हम क्यों पिछड़ रहे|
हैं कला हमारी क्यों, गैरों को बांट रहे हैं।
सोना-चांदी पारखी, परखे हीरे लाल।
सारी धातू जानते, करते बड़ा कमाल।
करते बड़ा कमाल, कहां से विद्या पायी।
नजर बड़ी है तेज, कहां सीखी चतुरायी।
कहे तरंग कविराय, ये सब अजमीढ़ की माया।
पीढ़ी दर पीढ़ी बनी रहे इनकी क्षत्रछाया।
बोलों ......
"महाराज अजमीढ़देवजी की जय"
"महाराज अजमीढ़देवजी की जय"
Sunday, 21 October 2012
AJMEEDHJI LOGO.....!!
सभी स्वर्णकार दोस्तों,
आने वाले २९ अक्टूबर २०१२ को हमारे आदि पुरुष श्री अजमीढ़जी जयंती के दिन सभी स्वर्णकार दोस्त अपने अपने प्रोफाइल पिक्चर पर "अजमीढ़जी लोगो" लगा कर अजमीढ़जी महाराज को श्रधासुमन अर्पित करे.
'जय अजमीढ़जी'
Please Change Your Profile Picture as Ajmeedh Ji Logo On Upcoming Ajmeedh Ji Jayanti
आने वाले २९ अक्टूबर २०१२ को हमारे आदि पुरुष श्री अजमीढ़जी जयंती के दिन सभी स्वर्णकार दोस्त अपने अपने प्रोफाइल पिक्चर पर "अजमीढ़जी लोगो" लगा कर अजमीढ़जी महाराज को श्रधासुमन अर्पित करे.
'जय अजमीढ़जी'
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Saturday, 20 October 2012
महाराजा अजमीढ़जी का इतिहास........!!
मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज श्री महाराजा अजमीढ़जी को अपना पितृ-पुरुष (आदि पुरुष) मानती है। ऐतिहासिक जानकारी जो विभिन्न रुपों में विभिन्न जगहों पर उपलब्ध हुई है उसके आधार पर हम मैढ़ क्षत्रिय अपनी वंशबेल को भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ पाते हैं। कहा गया है कि भगवान विष्णु के नाभि-कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी से अत्री और अत्रीजी की शुभ दृष्टि से चंद्र-सोम हुए। चंद्रवंश की 28वीं पीढ़ी में अजमीढ़जी पैदा हुए। महाराजा अजमीढ़जी का जन्म त्रेतायुग के अन्त में हुआ था।
मर्यादा पुरुषोत्तम के समकालीन ही नहीं अपितु उनके परम मित्र भी थे। उनके दादा महाराजा श्रीहस्ति थे जिन्होंने प्रसिद्ध हस्तिनापुर बसाया था। महाराजा हस्ति के पुत्र विकुंठन एवं दशाह राजकुमारी महारानी सुदेवा के गर्भ से महाराजा अजमीढ़जी का जन्म हुआ। इनके अनेक भाईयों में से पुरुमीढ़ और द्विमीढ़ विशेष प्रसिद्ध हुए और दोनों पराक्रमी राजा थे। द्विमीढ़जी के वंश में मर्णान, कृतिमान, सत्य और धृति आदि प्रसिद्ध राजा हुए। पुरुमीढ़जी के कोई संतान नहीं हुई।
राज
राज
ा हस्ती के येष्ठ पुत्र अजमीढ़ महान चक्रवर्ती राजा चन्द्रवंशी थे। महाराजा अजमीढ़ के दो रानियां सुयति व नलिनी थी। इनके गर्भ में बुध्ददिषु, ऋव, प्रियमेध व नील नामक पुत्र हुए। उनसे मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज का वंश आगे चला। अजमीढ़ ने अजमेर नगर बसाकर मेवाड़ की नींव डाली। महान क्षत्रिय राजा होने के कारण अजमीढ़ धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे। वे सोने-चांदी के आभूषण, खिलौने व बर्तनों का निर्माण कर दान व उपहार स्वरुप सुपुत्रों को भेंट किया करते थे। वे उच्च कोटि के कलाकार थे। आभूषण बनाना उनका शौक था और यही शौक उनके बाद पीढ़ियों तक व्यवसाय के रुप में चलता आ रहा है।
समाज के सभी व्यक्ति इनको आदि पुरुष मानकर अश्विनी शुक्ल पूर्णिमा को अजमीढ़जी जयंती मनाते हैं।
|| जय अजमीढ़जी ||
Source:https://www.facebook.com/groups/nandkishor.mosun/
समाज के सभी व्यक्ति इनको आदि पुरुष मानकर अश्विनी शुक्ल पूर्णिमा को अजमीढ़जी जयंती मनाते हैं।
|| जय अजमीढ़जी ||
Source:https://www.facebook.com/groups/nandkishor.mosun/
Saturday, 13 October 2012
मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज की बेटी डॉ. प्रियंका "IAS" अधिकारी बनी....!!
मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज की बेटी डॉ. प्रियंका "IAS" अधिकारी बनी....!!
मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज की बिटिया डॉ. प्रियंका ने साबित कर दिया की समाज की बेटिया किसी से पीछे नहीं है.
सूरतगढ़ के श्री बनवारीलालजी सोनी (सहदेव) की बड़ी बेटि प्रियंका ने करके IAS की परीक्षा में पुरे देश से ५२ वी रँक में आकार अपना और समाज का नाम स्वर्ण अक्षर से लिख दिया.
हमारे समाज के लिए ये बड़ी उपलब्धि और गर्व की बात है और प्रियंका ने बनकर पुरे स्वर्णकार समाज का नाम रोशन किया है और शायद प्रियंका हमारी समाज की पहली बेटिया है जिसने IAS की परीक्षा में पहले १०० में स्थान प्राप्त किया है.
पढ़ाई में हमेशा से अव्वल रहने वाली प्रियंका आरपीएमटी में भी टॉपर रह चुकी हैं। उसका सपना IAS बनने का था, जो आज पूरा हो गया।
डॉक्टर से प्रशासनिक अधिकारी बनी प्रियंका का कहना है की वह समाज हित के लिए कुछ खास करना चाहती थी और जिसके चलते ही उसने IAS बननेका सपना संजोया और दूसरी बार में ही कड़ी मेहनत और लगन से आल इंडिया में ५२ वी रँक प्राप्त करते हुए साबित कर दिया की अगर लगन हो तो देखे हुए सपने पुरे भी किये जा सकते है.
डॉ. प्रियंका स्वर्णकार समाज से चयनित पहली महिला IAS अधिकारी होगी.अजमीधजी ब्लॉग की और से डॉ. प्रियंका और श्री बनवारीलालजी सोनी (सहदेव) का हार्दिक हार्दिक अभिनन्दन.
डॉ प्रियंका ने भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी बन हमारे स्वर्णकार समाज की शान पुरे भारत में बढाई है और ऐसी बेटिया पर हमें नाज़ है.
"स्वर्णकार एकता जिंदाबाद"
डॉ प्रियंका ने भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी बन हमारे स्वर्णकार समाज की शान पुरे भारत में बढाई है और ऐसी बेटिया पर हमें नाज़ है.
"स्वर्णकार एकता जिंदाबाद"
Sunday, 26 August 2012
Saturday, 30 June 2012
हमारा समाज.....!!
चन्द्रवंश में हस्ति नाम प्रतापी राजा की संतान विकुंठन के पुत्र महाराजा अजमीढ़ थे । उनकी माता का नाम रानी सुदेवा था। त्रेता युग में जब परशुराम्जी क्षत्रियों से कुपित होकर उनका संहार कर रहे थे ऐसे आपातकाल में वन स्थित ॠषि-मुनियों ने उन्हें शरण दी। तत्कालीन महाराज अजमीढ़जी क्षत्रियों की दयनीय दशा देखकर चिंतित रहने लगे। उन्हें स्वर्णकला का ज्ञान था, उन्होंने राज्य का कार्यभार युवराज संवरण को सौंपा व वानप्रस्थ आश्रम पहुंच आश्रम स्थापित किया व भयातुर क्षत्रियों को संरक्षण दिया। स्वर्णकारी की शिक्षा देकर सम्मान प्रदान किया। जनकपुरी में शिवधनुष भंग होने के अवसर पर रामजी से परशुरामजी का वार्तालाप होने पर क्षत्रियों के प्रति क्रोध शांत हुआ। जो क्षत्रिय स्वर्णकला में पारंगत हो चुके थे, उन्होंने इस स्वर्णकला को अपनाए रखा व पीढ़ी दर पीढ़ी उन्नत करते हुए सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाया।
"श्री अजमीढ़ जी महाराज की जय"
Wednesday, 16 May 2012
मैं स्वर्णकार हूँ......!!
मैं स्वर्णकार हूँ ,स्वर्णकार होने का मुझको स्वाभिमान ।
मेरी नस-नस में क्षत्रिय रक्तम मैं अजमीढ़ का वंशज हूँ,
मैं मानवता का दिव्य तेज, मैं क्षत्रिय वर्ग का सूरज हूँ ,
मैं हूँ भारत की शान मैं स्वर्णकार हूँ ।।
मैं स्वर्णकार हूँ,स्वर्णकार होने का मुझको स्वाभिमान ।
मैं भारत माँ का पुत्र, मम हाथों में स्वर्ण व्यापर तन्त्र,
मैं स्वदेश की अर्थ रीड, मैं भारत का समृद्ध मन्त्र ,
मैं हूँ समाज का कीर्तिमान,मैं स्वर्णकार हूँ ।।
मैं स्वर्णकार हूँ, स्वर्णकार होने का मुझको स्वाभिमान
| जय महाराजा श्री अजमीढ़ जी |
मेरी नस-नस में क्षत्रिय रक्तम मैं अजमीढ़ का वंशज हूँ,
मैं मानवता का दिव्य तेज, मैं क्षत्रिय वर्ग का सूरज हूँ ,
मैं हूँ भारत की शान मैं स्वर्णकार हूँ ।।
मैं स्वर्णकार हूँ,स्वर्णकार होने का मुझको स्वाभिमान ।
मैं भारत माँ का पुत्र, मम हाथों में स्वर्ण व्यापर तन्त्र,
मैं स्वदेश की अर्थ रीड, मैं भारत का समृद्ध मन्त्र ,
मैं हूँ समाज का कीर्तिमान,मैं स्वर्णकार हूँ ।।
मैं स्वर्णकार हूँ, स्वर्णकार होने का मुझको स्वाभिमान
| जय महाराजा श्री अजमीढ़ जी |
Monday, 23 April 2012
अक्षय तृतीया की अक्षय शुभकामनाये...!!
आप सभी स्वर्णकार भाइयो और परिवार को अक्षय तृतीया की पुन्य वेला पर अक्षय शुभकामनाये.
अक्षय तृतीया का दिन एक पवित्र दिन है और इस पुरे के पुरे दिन को ही शुभ दिन माना जाता है .
अक्षय का अर्थ है जो कभी नष्ट नहीं होता है .इसलिए आज के दिन किये गए दान पुण्य का अवश्य फल प्राप्त होता है एवं कोई भी नया कार्य जो आज प्रारंभ किया गया हो उसमे सफलता और उन्नति का होना अनिवार्य है .
आज के दिन प्रारंभ किये गए कार्य सौभाग्यशाली और सफल होते है .इसलिए आज बहुत से लोग सोने के गहने-जवाहरात भी खरीदते है.मिल जाता है अतुल्य वैभव निश्चय ही निश्छल भाव ही होता है अक्षय और स्वीकृत उन चरणों को जिन्हें मां लक्ष्मी सराहती है.
| ॐ श्री लक्ष्मी नारायणाय नम: |
| जय अजमीढ़ जी महाराज |
Tuesday, 3 April 2012
श्री मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार युवक मंडल का अनमोल छायाचित्र
सन १९५२ में अखिल भारतीय मैढ़ क्षत्रिय समाज के अधिवेशन के अवसर पर श्री मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार युवक मंडल के तत्कालीन गणमान्य कर्मठ समाजबंधू एव पदाधिकारीयो का अनमोल छायाचित्र
छायाचित्र का विवरण :
१ ली लाइन - मगराजजी लावट,रामरतनजी कडेल,किसनलालजी सिणगत,दगड़ूलालजी मोसुन,रतनलालजी कडेल,सुवालालजी सहदेव,लखमीचन्द्रजी सहदेव
२ री लाइन - मदनजी महाराज,हरिरामजी अग्रोया,दानमलजी सहदेव,जयनारायनजी कडेल,बन्सिलालजी कडेल,बस्तीरामजी मिरंडिया,देविलालजी सहदेव
२ री लाइन - नंद्लालजी सिणगत,शिवनारायणजी अग्रोया,जीतमलजी अग्रोया,सुखदेवजी कडेल,किसनलालजी कडेल,रामचंद्रजी जडिया (कुकरा),बालमुकुंदजी जडिया (कुकरा)
निचे बैठे हुए - रामगोपालजी कडेल,गुलाबचन्द्रजी सहदेव,राधेश्यामजी मायछ
Saturday, 24 March 2012
मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज की कुलदेवियाँ......!!
मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज की कुलदेवियाँ
श्री रामनारायण सोनी द्वारा लिखित पुस्तक मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार जाति का इतिहास में इस समाज की कुलदेवियों का विवरण है।
कुलदेवी उपासक सामाजिक गोत्र
1. अन्नपूर्णा माता - खराड़ा, गंगसिया, चुवाणा, भढ़ाढरा, महीचाल,रावणसेरा, रुगलेचा।
2. अमणाय माता - कुझेरा, खीचाणा, लाखणिया, घोड़वाल, सरवाल, परवला।
3. अम्बिका माता - कुचेवा, नाठीवाला।
4. आसापुरी माता - अदहके, अत्रपुरा, कुडेरिया, खत्री आसापुरा, जालोतिया, टुकड़ा, ठीकरिया, तेहड़वा, जोहड़, नरवरिया, बड़बेचा, बाजरजुड़ा, सिंद, संभरवाल, मोडक़ा, मरान, भरीवाल, चौहान।
5. कैवाय माता - कीटमणा, ढोलवा, बानरा, मसाणिया, सींठावत।
6. कंकाली माता - अधेरे, कजलोया, डोलीवाल, बंहराण, भदलास।
7. कालिका माता - ककराणा, कांटा, कुचवाल, केकाण, घोसलिया, छापरवाल, झोजा, डोरे, भीवां, मथुरिया, मुदाकलस।
8. काली माता - बनाफरा
9. कोटासीण माता - गनीवाल, जांगड़ा, ढीया, बामलवा, संखवाया, सहदेवड़ा, संवरा।
10. खींवजा माता - रावहेड़ा, हरसिया।
11. चण्डी माता - जांगला, झुंडा, डीडवाण, रजवास, सूबा।
12. चामुण्डा माता - उजीणा, जोड़ा, झाट, टांक, झींगा, कुचोरा, ढोमा, तूणवार, धूपड़, बदलिया, बागा, भमेशा, मुलतान, लुद्र, गढ़वाल, गोगड़, चावड़ा, चांवडिया, जागलवा, झीगा, डांवर, सेडूंत।
13. चक्रसीण माता - चतराणा, धरना, पंचमऊ, पातीघोष, मोडीवाल, सीडा।
14. चिडाय माता - खीवाण जांटलीवाल, बडग़ोता, हरदेवाण।
15. ज्वालामुखी माता - कड़ेल, खलबलिया, छापरड़ा, जलभटिया, देसवाल, बड़सोला, बाबेरवाल, मघरान, सतरावल, सत्रावला, सीगड़, सुरता, सेडा, हरमोरा।
16. जमवाय माता - कछवाहा, कठातला, खंडारा, पाडीवाल,बीजवा, सहीवाल, आमोरा, गधरावा, धूपा, रावठडिय़ा।
17. जालपा माता - आगेचाल, कालबा, खेजड़वाल, गदवाहा, ठाकुर, बंसीवाल, बूट्टण, सणवाल।
18. जीणमाता - तोषावड़, ।
19. तुलजा माता - गजोरा, रुदकी।
20. दधिमथी माता - अलदायण, अलवाण, अहिके,उदावत, कटलस, कपूरे, करोबटन, कलनह, काछवा, कुक्कस, खोर, माहरीवाल।
21. नवदुर्गा माता - टाकड़ा, नरवला, नाबला, भालस।
22. नागणेचा माता - दगरवाल, देसा, धुडिय़ा, सीहरा, सीरोटा।
23. पण्डाय (पण्डवाय) माता - रगल, रुणवाल, पांडस।
24. पद्मावती माता - कोरवा, जोखाटिया, बच्छस, बठोठा, लूमरा।
25. पाढराय माता - अचला।
26. पीपलाज माता - खजवानिया, परवाल, मुकारा।
27. बीजासण माता - अदोक , बीजासण, मंगला, मोडकड़ा, मोडाण, सेरने।
28. भद्रकालिका माता - नारनोली।
29. मुरटासीण माता - जाड़ा, ढल्ला, बनाथिया, मांडण, मौसूण, रोडा।
30. लखसीण माता - अजवाल, अजोरा, अडानिया, छाहरावा, झुण्डवा, डीगडवाल, तेहड़ा, परवलिया, बगे, राजोरिया, लंकावाल, सही, सुकलास, हाबोरा।
31. ललावती माता - कुकसा, खरगसा, खरा, पतरावल, भानु, सीडवा, हेर।
32. सवकालिका माता - ढल्लीवाल, बामला, भंवर, रूडवाल, रोजीवाल, लदेरा, सकट।
33. सम्भराय माता - अडवाल, खड़ानिया, खीपल, गुगरिया, तवरीलिया, दुरोलिया, पसगांगण, भमूरिया।
34. संचाय माता - डोसाणा।
35. सुदर्शनमाता - मलिंडा।
यह विवरण विभिन्न समाजों की प्रतिनिधि संस्थाओं तथा लेखकों द्वारा संकलित एवं प्रकाशित सामग्री पर आधारित है। इसके बारे में प्रबुद्धजनों की सम्मति एवं सुझाव सादर आमन्त्रित हैं।
1. अन्नपूर्णा माता - खराड़ा, गंगसिया, चुवाणा, भढ़ाढरा, महीचाल,रावणसेरा, रुगलेचा।
2. अमणाय माता - कुझेरा, खीचाणा, लाखणिया, घोड़वाल, सरवाल, परवला।
3. अम्बिका माता - कुचेवा, नाठीवाला।
4. आसापुरी माता - अदहके, अत्रपुरा, कुडेरिया, खत्री आसापुरा, जालोतिया, टुकड़ा, ठीकरिया, तेहड़वा, जोहड़, नरवरिया, बड़बेचा, बाजरजुड़ा, सिंद, संभरवाल, मोडक़ा, मरान, भरीवाल, चौहान।
5. कैवाय माता - कीटमणा, ढोलवा, बानरा, मसाणिया, सींठावत।
6. कंकाली माता - अधेरे, कजलोया, डोलीवाल, बंहराण, भदलास।
7. कालिका माता - ककराणा, कांटा, कुचवाल, केकाण, घोसलिया, छापरवाल, झोजा, डोरे, भीवां, मथुरिया, मुदाकलस।
8. काली माता - बनाफरा
9. कोटासीण माता - गनीवाल, जांगड़ा, ढीया, बामलवा, संखवाया, सहदेवड़ा, संवरा।
10. खींवजा माता - रावहेड़ा, हरसिया।
11. चण्डी माता - जांगला, झुंडा, डीडवाण, रजवास, सूबा।
12. चामुण्डा माता - उजीणा, जोड़ा, झाट, टांक, झींगा, कुचोरा, ढोमा, तूणवार, धूपड़, बदलिया, बागा, भमेशा, मुलतान, लुद्र, गढ़वाल, गोगड़, चावड़ा, चांवडिया, जागलवा, झीगा, डांवर, सेडूंत।
13. चक्रसीण माता - चतराणा, धरना, पंचमऊ, पातीघोष, मोडीवाल, सीडा।
14. चिडाय माता - खीवाण जांटलीवाल, बडग़ोता, हरदेवाण।
15. ज्वालामुखी माता - कड़ेल, खलबलिया, छापरड़ा, जलभटिया, देसवाल, बड़सोला, बाबेरवाल, मघरान, सतरावल, सत्रावला, सीगड़, सुरता, सेडा, हरमोरा।
16. जमवाय माता - कछवाहा, कठातला, खंडारा, पाडीवाल,बीजवा, सहीवाल, आमोरा, गधरावा, धूपा, रावठडिय़ा।
17. जालपा माता - आगेचाल, कालबा, खेजड़वाल, गदवाहा, ठाकुर, बंसीवाल, बूट्टण, सणवाल।
18. जीणमाता - तोषावड़, ।
19. तुलजा माता - गजोरा, रुदकी।
20. दधिमथी माता - अलदायण, अलवाण, अहिके,उदावत, कटलस, कपूरे, करोबटन, कलनह, काछवा, कुक्कस, खोर, माहरीवाल।
21. नवदुर्गा माता - टाकड़ा, नरवला, नाबला, भालस।
22. नागणेचा माता - दगरवाल, देसा, धुडिय़ा, सीहरा, सीरोटा।
23. पण्डाय (पण्डवाय) माता - रगल, रुणवाल, पांडस।
24. पद्मावती माता - कोरवा, जोखाटिया, बच्छस, बठोठा, लूमरा।
25. पाढराय माता - अचला।
26. पीपलाज माता - खजवानिया, परवाल, मुकारा।
27. बीजासण माता - अदोक , बीजासण, मंगला, मोडकड़ा, मोडाण, सेरने।
28. भद्रकालिका माता - नारनोली।
29. मुरटासीण माता - जाड़ा, ढल्ला, बनाथिया, मांडण, मौसूण, रोडा।
30. लखसीण माता - अजवाल, अजोरा, अडानिया, छाहरावा, झुण्डवा, डीगडवाल, तेहड़ा, परवलिया, बगे, राजोरिया, लंकावाल, सही, सुकलास, हाबोरा।
31. ललावती माता - कुकसा, खरगसा, खरा, पतरावल, भानु, सीडवा, हेर।
32. सवकालिका माता - ढल्लीवाल, बामला, भंवर, रूडवाल, रोजीवाल, लदेरा, सकट।
33. सम्भराय माता - अडवाल, खड़ानिया, खीपल, गुगरिया, तवरीलिया, दुरोलिया, पसगांगण, भमूरिया।
34. संचाय माता - डोसाणा।
35. सुदर्शनमाता - मलिंडा।
यह विवरण विभिन्न समाजों की प्रतिनिधि संस्थाओं तथा लेखकों द्वारा संकलित एवं प्रकाशित सामग्री पर आधारित है। इसके बारे में प्रबुद्धजनों की सम्मति एवं सुझाव सादर आमन्त्रित हैं।
Wednesday, 7 March 2012
HAPPY & COLORFUL HOLI ......!!
WISHING A VERY HAPPY & COLORFUL HOLI TO ALL SWARNKAR & FAMILY MEMBERS.
Sunday, 19 February 2012
Friday, 17 February 2012
हमारा समाज......!!
चन्द्रवंश में हस्ति नाम प्रतापी राजा की संतान विकुंठन के पुत्र महाराजा अजमीढ़ थे । उनकी माता का नाम रानी सुदेवा था। त्रेता युग में जब परशुराम्जी क्षत्रियों से कुपित होकर उनका संहार कर रहे थे ऐसे आपातकाल में वन स्थित ॠषि-मुनियों ने उन्हें शरण दी। तत्कालीन महाराज अजमीढ़जी क्षत्रियों की दयनीय दशा देखकर चिंतित रहने लगे। उन्हें स्वर्णकला का ज्ञान था, उन्होंने राज्य का कार्यभार युवराज संवरण को सौंपा व वानप्रस्थ आश्रम पहुंच आश्रम स्थापित किया व भयातुर क्षत्रियों को संरक्षण दिया। स्वर्णकारी की शिक्षा देकर सम्मान प्रदान किया। जनकपुरी में शिवधनुष भंग होने के अवसर पर रामजी से परशुरामजी का वार्तालाप होने पर क्षत्रियों के प्रति क्रोध शांत हुआ। जो क्षत्रिय स्वर्णकला में पारंगत हो चुके थे, उन्होंने इस स्वर्णकला को अपनाए रखा व पीढ़ी दर पीढ़ी उन्नत करते हुए सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाया। भौगोलिक स्थिति एवं क्षेत्रियता के कारण स्वर्णकार विभिन्न नामों से पुकारे जाते है।
1. देशवाली-मारवाड़ से बहुत वर्ष पहले दिल्ली एवं उत्तरप्रदेश में बसते है।
2. छेनगरिया- कई कारणों से ये बन्धु देशवालियों
3. पछादे- मुख्यत: दिल्ली एवं उत्तरप्रदेश में निवास करते है। देशवालियों से रस्म रिवाज,
खानपान न मिलने के कारण बेटी व्यवहार नहीं है।
4. निमाड़ी- मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में बसते हैं।
5. वनजारी- आंध्रप्रदेश एवं आसपास के क्षेत्रों में बसते हैं। ये लोग बन्जारों का काम करते हैं
एवं उन्हीं के साथ घुमक्क्ड़ जीवन बिताते हैं।
6. पजाबी- हमारे इन बन्धुओं में पंजाब के पहरावे के अतिरिक्त कोई अन्तर नहीं है।
7. भागलपुरी- बिहार के भागलपुर क्षेत्र में निवास करते हैं।
8. मारवाड़ी- मारवाड़ (राजस्थान) से धीरे धीरे देश के विभिन्न प्रान्तों में जाकर बस गये हैं। अपने
को मारवाड़ी हि कहते हैं।
9. ढ़ूढाडी- राजस्थान की जयपुर रियासत के निवासी।
10. शेखावटी- राजस्थान के बीकानेर से लगा क्षेत्र शेखावटी कहलाता है। यहां बसने वाले बन्धु
शेखावटी कहलाते हैं।
11. मालवी- मारवाड़ तथा मेवाड़ से आकर मालवा में बस गये।
12. माहोर- मथुरा, आगरा, करोली आदि स्थानों पर इस नाम से हमारे बन्धु बसते हैं।
Saturday, 11 February 2012
महाराजा अजमीढ़जी का इतिहास........!!
वैसे ऐतिहासिक जानकारी जो विभिन्न रुपों में विभिन्न जगहों पर उपलब्ध हुई है उसके आधार पर हम मैढ़ क्षत्रिय अपनी वंशबेल को भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ पाते हैं। कहा गया है कि भगवान विष्णु के नाभि-कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी से अत्री और अत्रीजी की शुभ दृष्टि से चंद्र-सोम हुए। चंद्रवंश की 28वीं पीढ़ी में अजमीढ़जी पैदा हुए।
महाराजा अजमीढ़जी का जन्म त्रेतायुग के अन्त में हुआ था। मर्यादा पुरुषोत्तम के समकालीन ही नहीं अपितु उअन्के परम मित्र भी थे। उनके दादा महाराजा श्रीहस्ति थे जिन्होंने प्रसिद्ध हस्तिनापुर बसाया था। महाराजा हस्ति के पुत्र विकुंठन एवं दशाह राजकुमारी महारानी सुदेवा के गर्भ से महाराजा अजमीढ़जी का जन्म हुआ। इनके अनेक भाईयों में से पुरुमीढ़ और द्विमीढ़ विशेष प्रसिद्ध हुए। द्विमीढ़जी के वंश में मर्णान, कृतिमान, सत्य और धृति आदि प्रसिद्ध राजा हुए। पुरुमीढ़जी के कोई संतान नहीं हुई।
महाराज अजमीढ़ की दो रानियां थी सुमित और नलिनी। इनके चार पुत्र हुए बृहदिषु, ॠष, प्रियमेव और नील । इस प्रकार महाराजा अजमीढ़जी का वंश वृद्धिगत होता गया, अलग-अलग पुत्रों-पौत्र,प्रपोत्रों के नाम से गोत्र उपगोत्र चलते गये।
हस्तिनापुर के अतिरिक्त अभी के अजमेर के आसपास का क्षेत्र मैढ़ावर्त के नाम से महाराजा अजमीढ़जी ने राज्य के रुप में स्थापित क्या और वहां और कल्याणकारी कार्य किये।
Wednesday, 1 February 2012
"पर-पीड़ा सम नहीं अधमाई"..........!!
मानवमात्र की मुक्ति का माध्यम सहानुभूति है | समवेदना के द्वारा हम कल्याण के मार्ग को प्रशस्त कर सकेंगे | विकलांगो को सहायता करे | निराधारो को आश्रय दे|
असहाय जनों को सहारा दे | बीमार व्यक्ति को यथासंभव मदत करे | कमजोर व्यक्ति को मदत करे |
मुसीबत में काम आये | दुखी लोगो को सुख पहुचाये | न जाने ,किस वेष में नारायण मिल जाये |तभी तो ,सेवा को महंता संत-महात्मा ने बताई है | सेवा का फल सदेव मीठा होता है |
"पर-हित सरिस धर्मं नहीं भाई |
पर-पीड़ा सम नहीं अधमाई |"
सदेव ध्यान में रखे की हम अपने व्यवहार से किसी को भी कष्ट-पीड़ा न पहुचाये | यदि किसी को हमारे द्वारा थोडा भी दर्द हुआ तो वह नीचता होगी |
हो सके तो, कल्याणकारी और सामाजिक कार्य करते रहे | ऐसे काम करे ,जिससे हित हो |
भूल कर भी अपने आचरण से कष्ट न दे |
आईये, इस भावना को अपने व्यवहार में उतरने का प्रयास करे |
इति शुभम |
संपादक
वेदप्रकाश आर्य , सहदेव
मेढ़ सोनार जगत
मानवमात्र की मुक्ति का माध्यम सहानुभूति है | समवेदना के द्वारा हम कल्याण के मार्ग को प्रशस्त कर सकेंगे | विकलांगो को सहायता करे | निराधारो को आश्रय दे|
असहाय जनों को सहारा दे | बीमार व्यक्ति को यथासंभव मदत करे | कमजोर व्यक्ति को मदत करे |
मुसीबत में काम आये | दुखी लोगो को सुख पहुचाये | न जाने ,किस वेष में नारायण मिल जाये |तभी तो ,सेवा को महंता संत-महात्मा ने बताई है | सेवा का फल सदेव मीठा होता है |
"पर-हित सरिस धर्मं नहीं भाई |
पर-पीड़ा सम नहीं अधमाई |"
सदेव ध्यान में रखे की हम अपने व्यवहार से किसी को भी कष्ट-पीड़ा न पहुचाये | यदि किसी को हमारे द्वारा थोडा भी दर्द हुआ तो वह नीचता होगी |
हो सके तो, कल्याणकारी और सामाजिक कार्य करते रहे | ऐसे काम करे ,जिससे हित हो |
भूल कर भी अपने आचरण से कष्ट न दे |
आईये, इस भावना को अपने व्यवहार में उतरने का प्रयास करे |
इति शुभम |
संपादक
वेदप्रकाश आर्य , सहदेव
मेढ़ सोनार जगत
Friday, 27 January 2012
HAPPY BASANT PANCHMI..!!
WISHING A VERY HAPPY BASANT PANCHMI TO ALL MAIDH KSHATRIYA SWARNKAR MEMBERS.
Happy Basant Panchami – Saraswati Jayanti
माघ शुक्ल पंचमी से बसंत ऋतु की शुरूआत होती है जो फाल्गुन कृष्ण पंचमी को पूर्ण होती है। बसंत पंचमी का दिन सभी प्रकार के कार्यों के लिए शुभ माना गया है। मलमास समाप्ति के बाद यह सबसे अधिक शुभ दिन होता है। किंवदंती है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। मार्कण्डेय पुराण में वर्णित सरस्वती के “घंटा शूलहलानि…” श्लोकों के जाप व हवन करने से बुद्धि कुशाग्र होती है। कलियुग में दान का महत्व बसंतोत्सव में प्रमुख है.
वसंत पंचमी एक भारतीय त्योहार है, इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
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Proud To Be SWARNKAR.....!!
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